पा - ोती आयु- २९ / 29
नाटक- क ादान लेखक- िवजय तडु लकर
ोित: म यहां बैठने के िलए नहीं आई ं , भाई जी, और न ही आपका झूठा भाषण सुनने आई ं , जैसा आप
अभी दे कर आए ह। ऐसी ा ज़ रत आन पड़ी िक आप मजबूर हो गए और आपने अपनी ितमा के
िवपरीत म ारी और झूठ से भरा भाषण दे िदया। लेिकन म वा व म जानती थी िक आप ा कहना
चाहते ह, सुन रही थी वो जो आप कह नहीं पा रहे थे। आपकी िनगाह जब तब उसे दे ख लेतीं और जहर
टपकाती थीं। गो ी ख होने के बाद उसने आपसे िमलने की कोिशश भी की थी, और मने यह भी दे खा,
नाथ जी, िक कैसे आप अपने परम आदरणीय को एकदम ठं डे पन से नजरअंदाज करके चल िदए थे। आप
मुझे और धोखा नहीं दे सकते। आपके मन म अ ण के िलए अपार घृणा है और कुछ नहीं।
( ोित के पापा, भाई जी उसे बैठकर ठं डे िदमाग से बात करने के िलए कहते ह।)
आप कीिजए बात िव ार से ठं डे िदमाग से। मेरे पास समय नहीं और ना ही ठं डा िदमाग। मुझे अपनी लड़ाई
लड़ने के िलए जाना है । रात को जब अ ण शराब के नशे म धुत होकर मेरे सामने आता है , तो उस व
आइए कभी अगर िह त हो तो। उसकी आं खों म जं गली जानवर उतर आता है । होंठों पर, चेहरे पर, शरीर
के एक-एक अंग म अ ण जानवर होता है। जानवरों की कृित उससे अलग नहीं होती। शु -शु म म भी
पागलों की तरह अपने उस अ ण को ढू ं ढा करती थी, जो इन बुरी वृि यों से परे है। वही धुन बां ध ले ती थी,
उसे बाहों म समेटना चाहती थी। लेिकन अनुभव ने िसखाया िक ऐसा कभी नहीं होता। जानवर भी अ ण
होता है , ेमी भी अ ण होता है , रा स भी अ ण ही है , किव भी अ ण ही है । आपने मुझसे जो छु पाया था,
अ ण ने मुझे वह िदया। एहसान तो मुझे उसका मानना चािहए, बताइए...? कौन सी पशु ता को अब जड़ से
न क ं ...? कौन से भगवान को जगाऊं...? नहीं, अब यह नहीं होगा, ोंिक लड़ाई म पीठ िदखाना गलत
है । आप ही ने तो हम बचपन से िसखाया है िक प र ितयों के सामने घुटने टे क दे ना कायरता है । यह
तािलयां लूटने वाला वा आपका ही है ना? आपको पता है , आपके िवचारों के योग ने मुझे बस एक िगनी
िपग बना िदया है । िघन आती है मुझे अपने आप से अब।
(थोड़ा सोचकर)
मुझे माफ कीिजए, मुंह म जो आया वह बोल रही ं , लेिकन आज आपका पाखं ड दे खकर ब त िचढ़ ई।
आ खर िकसिलए इस आदमी ने हमारी दे ह के भीतर स ाई का भलाई का डग हर सुबह ठूसा। अगर यह
आदमी इन तमाम च ूहों को तोड़कर जी सकता है तो इसने हमारी राह बं द ों कर दी...? कभी-कभी
मुझे लगता है , ना भाई जी, िक आप अपनी ही बेटी को कभी नहीं समझ पाए ह। आपको पता है , मुझे
मारपीट से उतनी तकलीफ नहीं होती िजतनी की िवचारों से होती है । मनु चुनाव करना सीखता है , लेिकन
मेरे पास तो दो ही िवक ह। एक आपके यह झूठे िवचार और दू सरा अ ण। आपको पता है , जब म अपनी
दु िनया छोड़कर यहां आती ं तो मुझे इस दु िनया से नफरत होने लगती है , इसिलए म आपसे घर पर िमलने
नहीं आई।
अ ण नाम का फैसला मे रा था और अब मुझे उसे जीने दीिजए। मेरे जीवन म अब आप कभी भी कोई
दखलंदाजी नहीं करगे, चाहे वह मुझे मारे पीटे या े म करे । आपके झूठे मू िवचारों के साथ म अपने जीवन
म आगे नहीं बढ़ सकती। मु झे अपनी खोज करनी है ।
(िनकल जाती है ।)