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जॉन स्टूअर्ट मिल का राजनीतिक चिंतन
https://ichef.bbci.co.uk/images/ic/640x360/p06ll7w7.jpg
[ 1806-1873]
द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय
एसोसिएट प्रोफ
े सर, राजनीति विज्ञान
क
ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बादलपुर, गौतम बुध नगर
उद्देश्य-
● राजनीतिक दर्शन क
े इतिहास में जॉन स्टूअर्ट मिल क
े योगदान की जानकारी
● राजनीतिक चिंतन में स्वतंत्रता की अवधारणा क
े संदर्भ में मिल क
े विचारों की जानकारी
● प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र में सुधार क
े लिए मिल द्वारा दिए गए सुझाव की जानकारी
● लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यक्ति क
े अधिकारों और राज्य की सत्ता क
े मध्य सामंजस्य क
े विषय में स्वतंत्र
चिंतन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना
जॉन स्टूअर्ट मिल 19वीं शताब्दी का सर्वाधिक प्रभावी अंग्रेज दार्शनिक,राजनीतिक अर्थ शास्त्री, संसद
सदस्य और लोक सेवक है । उसका चिंतन प्रक
ृ तिवाद, उपयोगितावाद, व्यक्तिवाद और उदारवाद का सुंदर
समन्वय है। उसक
े चिंतन का योगदान सामाजिक सिद्धांत, राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक अर्थव्यवस्था
तक विस्तृत है। बेंथम द्वारा प्रतिपादित राज्य क
े उपयोगिता वादी सिद्धांत में आवश्यक संशोधन कर मिल ने
उसे युगानुरूप बनाया। उसे अंतिम उपयोगितावाद विचारक क
े रूप में भी जाना जाता है। एक उदारवादी
विचारक क
े रूप में उसने अपने निबंध ‘एस्से ऑन लिबर्टी’ में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की जो यथार्थवादी धारणा दी
और जिस गौरव पूर्ण ढंग से वैचारिक स्वतंत्रता का समर्थन किया, उसक
े कारण उसने मिल्टन और जैफर्सन
जैसे चिंतकों क
े मध्य सम्मान पूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया । वेपर ने उसक
े योगदान को स्वीकार करते हुए
लिखा है कि
‘’ विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लिखे गए इस अद्वितीय और ओजस्वी निबंध ने मिल को विश्व क
े
लोकतंत्र समर्थकों क
े मध्य सम्माननीय स्थान प्रदान कर दिया है। ‘’ आधुनिक युग में उसक
े चिंतन ने जॉन
रॉल्स, रॉबर्ट नोजिक ,कि
ं स ,बरतरेंड रसल , कॉल पापर और इसाह बर्लिन क
े विचारों को प्रभावित
किया।
जीवन एवं व्यक्तित्व-
जे. एस. मिल का जन्म अपने पिता जेम्स मिल क
े ओजस्वी संतान क
े रूप में 1806 में लंदन में हुआ था।
वह बेंथम का प्रमुख शिष्य था और अपने पिता क
े संरक्षण और अनुशासन में उसकी शिक्षा का क
् रम
बाल्यावस्था में ही शुरू हो गया था। तर्क शास्त्र ,राजनीति शास्त्र, मनोविज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थ शास्त्र,
ग्रीक, लैटिन और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन कर 16 वर्ष की आयु में ही वह प्रकांड विद्वान बन चुका था,
कि
ं तु औपचारिक रूप में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु वह कभी किसी विश्वविद्यालय में नहीं गया। शिक्षा पूरी
करने क
े बाद अपने पिता क
े अधीन उसने जूनियर क्लर्क की नौकरी प्रारंभ की। उसक
े पिता ईस्ट इंडिया
क
ं पनी में कार्मिक थे जिन्हें उनक
े पद की प्राप्ति ‘ हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’ लिखने क
े कारण प्राप्त हुई
थी। अपनी प्रतिभा क
े बल पर मिल शीघ्र ही उच्च पदों पर पदोन्नत होता गया । बाल्यावस्था में ही शिक्षा क
े
तीव्र क
् रम ने युवावस्था में उसे अवसादी बना दिया, जिसे दूर करने का कार्य श्रीमती हैरियट ट्रेलर क
े द्वारा
किया गया जो बाद में उनकी पत्नी भी बनी। मिल क
े लेखन पर श्रीमती टेलर का अत्यधिक प्रभाव है,
जिसकी स्वीकारोक्ति स्वयं मिल क
े द्वारा अपनी आत्मकथा में की गई है। उसने अपना सुप्रसिद्ध निबंध’ एस्से
ऑन लिबर्टी’ अपनी पत्नी को ही आभार स्वरूप समर्पित किया है। एक विद्वान और दार्शनिक होने क
े साथ-साथ
क्रियात्मक राजनीति क
े क्षेत्र में भी मिल को अत्यधिक सफलता प्राप्त हुई। 1866 में वह ब्रिटिश संसद
का सदस्य चुना गया और सांसद रहते हुए उसने महिला मताधिकार, अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व और खुले
मतदान का समर्थन किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री ग्लाइडस्टन उससे बहुत प्रभावित थे, हालांकि ब्रिटिश
जनता ने उसक
े विचारों और कार्यों को पसंद नहीं किया, अतः एक सक्रिय राजनीतिज्ञ क
े रूप में उसका
जीवन काल बहुत लंबा नहीं रहा। 1873 में फ
् रांस क
े एविग्नन नगर में उसका देहांत हो गया।
रचनाएं-
मिल ने अपने जीवन काल में कई क
ृ तियों की रचना की, जिनमें से क
ु छ प्रमुख इस प्रकार हैं-
● सिस्टम ऑफ लॉजिक
● द प्रिंसिपल्स ऑफ़ पॉलीटिकल इकोनामी
● ऑन लिबर्टी
● क
ं सीडरेशन ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट
● यूटिलिटेरिएनिज्म
● थॉट्स ऑन पार्लियामेंट्री रिफॉर्म
● द सब्जेक्शन ऑफ वूमेन
● ऑटोबायोग्राफी
प्रमुख राजनीतिक विचार
1. स्वतंत्रता संबंधी धारणा-
मिल एक उदारवादी विचारक है और इसी कारण वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहुत ज्यादा महत्व देता
है। उसक
े स्वतंत्रता संबंधी विचारों पर जोसेफ प्रीस्टले और जोसिया वारेन का प्रभाव है ।
उसक
े स्वतंत्रता संबंधी विचार शासन की निरंक
ु शता क
े विरुद्ध एक घोषणापत्र क
े रूप में मान्य है
।
● स्वतंत्रता क्यों महत्वपूर्ण है-
स्वतंत्रता क
े विचार पर चिंतन करते हुए मिल ने स्वतंत्रता क
े महत्व का प्रतिपादन किया। उसकी दृष्टि में स्वतंत्रता
की आवश्यकता दो कारणों से है- प्रथम, व्यक्ति क
े व्यक्तित्व विकास क
े लिए और द्वितीय, सामाजिक विकास क
े
लिए। प्रत्येक व्यक्ति क
े जीवन का मूल उद्देश्य अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है और यह विकास स्वतंत्रता
क
े वातावरण में ही संभव है, अतः व्यक्ति क
े लिए स्वतंत्रता आवश्यक है। समाज क
े विकास क
े लिए भी आवश्यक है
कि व्यक्तियों क
े द्वारा विभिन्न सार्वजनिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप में चिंतन किया जाए और उसकी अभिव्यक्ति की जाए।
नवीन विचारों की अभिव्यक्ति क
े कारण ही समाज प्रगति क
े पथ पर अग्रसर होता है, अतः स्वतंत्रता समाज क
े
विकास की दृष्टि से भी एक आवश्यक दशा है।
● स्वतंत्रता का स्वरूप-
मिल ने स्वतंत्रता क
े 2 स्वरूपों का वर्णन किया है। प्रथम, पूर्ण स्वतंत्रता और द्वितीय नियंत्रित या संयमित
स्वतंत्रता। स्वतंत्रता क
े इन दोनों रूपों का विवेचन करते हुए मिल ने व्यक्ति क
े कार्यों को दो भागों में विभाजित
किया है -1. स्व - संबंधी कार्य 2. पर- संबंधी कार्य। स्व -संबंधी कार्यों का संबंध व्यक्ति क
े निहायत व्यक्तिगत
जीवन से है। उनका प्रभाव दूसरों पर नहीं पड़ता। मिल का विचार है कि व्यक्तिगत जीवन से संबंधित कार्यों क
े
विषय में व्यक्ति को वहां तक पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए जहां तक उसका असर दूसरों की स्वतंत्रता पर नहीं
पड़ रहा है। पर -संबंधी कार्यों का असर दूसरों पर पड़ता है, अतः राज्य और समाज को क
ु छ हद तक इन कार्यों पर
नियंत्रण स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। मिल इसे संयमित स्वतंत्रता का नाम देता है। मिल ने इस संबंध में
उदाहरण दिया है कि यदि एक पुल क
े टूटने की आशंका है तो किसी व्यक्ति को उस पुल पर जाने से रोका जा सकता है,
क्योंकि पुल टूटने का प्रभाव न क
े वल उस व्यक्ति पर पड़ेगा, अपितु अप्रत्यक्ष रूप से समाज को भी उस की हानि
उठानी पड़ेगी।
● स्वतंत्रता क
े प्रकार-
स्वतंत्रता क
े स्वरूप पर चर्चा करने क
े बाद मिल ने उसक
े प्रकारों की व्याख्या की है। वह मुख्यतः स्वतंत्रता क
े दो
प्रकार मानता है-
● विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-
प्रत्येक व्यक्ति को निर्बाध रूप से किसी विषय पर विचार करने और विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त होनी
चाहिए, ऐसी मिल की मान्यता है। वैचारिक स्वतंत्रता क
े अंतर्गत अंतःकरण की स्वतंत्रता, चिंतन की स्वतंत्रता और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सम्मिलित है। वैचारिक स्वतंत्रता क
े विषय में मिल का कथन है कि ‘’यदि एक व्यक्ति क
े
अतिरिक्त संपूर्ण मानव जाति एक मत हो, तब भी मानव जाति को जबरदस्ती उस व्यक्ति को चुप करने का अधिकार वैसे
ही नहीं है जैसे उस व्यक्ति को संपूर्ण मानव जाति को चुप करने का अधिकार नहीं है।’’
मिल क
े द्वारा वैचारिक स्वतंत्रता का समर्थन कई आधार पर किया गया है। जैसे-
● मिल की मान्यता है कि सत्य क
े विभिन्न पक्ष होते हैं और वास्तविक सत्य तभी प्रकट हो पाता है जब हम उसक
े
विभिन्न पक्षों पर स्वतंत्र अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करें। विचार अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने का तात्पर्य
सत्य का दमन करना है। वैचारिक स्वतंत्रता इतनी महत्वपूर्ण है कि यह समाज में एक सनकी व्यक्ति को भी
प्राप्त होनी चाहिए क्योंकि इस सनकपन में ही हो सकता है कि उसक
े द्वारा क
ु छ ऐसे विचार व्यक्त किए
जाएं जो संपूर्ण समाज क
े लिए कल्याणकारी हो। इतिहास से उदाहरण देते हुए मिल यह कहता है कि ‘’
मानव जाति को बार-बार यह बताने की जरूरत नहीं है कि किसी समय में यूनान में सुकरात नाम का एक व्यक्ति
हुआ था जिसक
े विचार समाज क
े अधिकांश व्यक्तियों क
े विचारों से भिन्न थे और समाज क
े ठेक
े दारों में
सुकरात को उसक
े भिन्न विचारों क
े कारण विषपान का दंड दिया था जबकि सत्य है कि उन व्यक्तियों क
े
विचार गलत और सुकरात क
े विचार सही थे। ‘’ उसक
े शब्दों में,’’ कोई भी समाज जिसमें सनकी पन
उपहास और तिरस्कार का विषय हो, एक पूर्ण समाज और राज्य नहीं हो सकता। ‘’
2. कार्य की स्वतंत्रता-
स्वतंत्रता का दूसरा प्रमुख प्रकार कार्य की स्वतंत्रता है। हालांकि मिल की मान्यता है कि विचार और
कार्य की स्वतंत्रता एक ही सिक्के क
े दो पहलू हैं क्योंकि बिना कार्य गत स्वतंत्रता क
े वैचारिक स्वतंत्रता अपूर्ण है ।
स्वतंत्र कार्य क
े अभाव में स्वतंत्र चिंतन वैसा ही है जैसे कोई पक्षी उड़ना तो चाहता हो , लेकिन उसक
े पंख नहीं उड़ते
हो।
कि
ं तु कार्यगत स्वतंत्रता को मिल वैचारिक स्वतंत्रता की तरह निर्बाध नहीं मानता और समाज हित में
उस पर प्रतिबंध लगाए जाने का समर्थन करता है। यदि व्यक्ति क
े किसी कार्य से संपूर्ण समाज का अहित होता हो
और स्वयं उसका भी विकास बाधित होता हो तो ऐसी स्थिति में राज्य हस्तक्षेप करक
े व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित
कर सकता है। वर्तमान में विभिन्न राज्यों में स्वतंत्रता की इसी धारणा पर अमल किया जाता है। मिल ने भी चार
आधारों पर कार्य गत स्वतंत्रता को सीमित करने का समर्थन किया है-
1. अपने कार्यों से दूसरों को हानि पहुंचाना
2. समाज की आंतरिक शांति और सुरक्षा को संकटग्रस्त करना
3. सार्वजनिक कर्तव्य क
े पालन में अवरोध उपस्थित होना
4. स्वयं व्यक्ति क
े व्यक्तित्व को हानि पहुंचाना
इस प्रकार मिल कार्यरत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहता है कि ‘’ समाज या राज्य मनुष्य आचरण की क
े वल
उसी भाग को नियंत्रित करने का अधिकारी है जो दूसरे व्यक्तियों से संबंधित है। आचरण का जो भाग स्वयं उससे
संबंधित है उसमें उसकी स्वतंत्रता पूर्ण है। ‘’ अपने शरीर, मस्तिष्क और आत्मा पर व्यक्ति संप्रभु है।’’
आलोचना-
मिल की स्वतंत्रता संबंधी धारणा पर आलोचकों क
े द्वारा निम्नांकित आधारों पर आक्षेप किया गया है-
● मिल द्वारा व्यक्त यह विचार कि ‘व्यक्ति अपने मस्तिष्क, अपनी आत्मा और अपने ऊपर संप्रभु है’ व्यक्ति
को अपने हितों का सर्वोत्तम निर्णय कर्ता बना देता है, जबकि व्यावहारिक दृष्टि से ऐसा हमेशा संभव नहीं होता
क्योंकि मानव का जीवन दिनों दिन जटिल होता जा रहा है और व्यक्ति की भौतिक, बौद्धिक नैतिक
आवश्यकताओं का उसकी अपेक्षा समाज ही अधिक अच्छी तरह निर्णय कर सकता है। अर्थात मिल का
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विचार सामाजिक जीवन की वास्तविकता ओं से संगति नहीं रखता।
● आलोचक यह भी मानते हैं कि सनकी लोगों को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करना समाज क
े लिए
अहितकर होगा। सर लेस्ली स्टीफन , प्रोफ
े सर मैक्कन आदि का मंतव्य है कि झक्की लोगों और सनकियों
को सुकरात और ईसा मसीह जैसे अलौकिक एवं दिव्य पुरुषों की श्रेणी में रखना उनक
े व्यक्तित्व की
महानता को न समझ पाना है।
● प्रोफ
े सर से वाहन का मत है कि मानवीय कार्यों को स्व- संबंधी और पर -संबंधी श्रेणियों में विभाजित करना
एक बचकाना कार्य है, क्योंकि कोई भी कार्य ऐसा नहीं होता जिसक
े परिणाम कार्य करने वाले व्यक्ति तक ही
सीमित रहें। जैसे शराब पीना प्रथम दृष्टया व्यक्तिगत कार्य लगता है कि
ं तु अत्यधिक मद्यपान करने से व्यक्ति
समाज का उपयोगी सदस्य नहीं रह जाता है और इसका दुष्प्रभाव उसक
े परिवार और समाज क
े अन्य
सदस्यों को भुगतना पड़ता है।
● मिल ने सत्य क
े उद्घाटन क
े लिए वैचारिक तर्क -वितर्क को आवश्यक माना है, कि
ं तु व्यवहार में हर व्यक्ति क
े
अंदर इतनी बौद्धिक क्षमता नहीं होती कि वह विषय क
े विभिन्न पहलुओं पर तर्क कर सक
े । यदि प्रत्येक व्यक्ति
छोटी-छोटी बातों पर भी तर्क करने लग जाए, तो इसक
े परिणाम व्यापक रूप से बहुत अच्छे नहीं होंगे।
● मिल की स्वतंत्रता संबंधी धारणा पूर्णतः निषेधात्मक है। वह नहीं बता पाता की मूलतः स्वतंत्रता क्या है और
इसकी प्राप्ति क
े लिए कौन-कौन सी परिस्थितियां राज्य द्वारा प्रदान की जानी चाहिए। अर्थात अधिकारों क
े
स्पष्ट दर्शन क
े अभाव में स्वतंत्रता की मूल अवधारणा मूर्त रूप धारण नहीं कर सकती। प्रोफ़
े सर बार्कर ने
लिखा है, ‘’मिल, उसकी बचत क
े लिए काफी गुंजाइश छोड़ देने पर भी हमें खोखली स्वतंत्रता और काल्पनिक
व्यक्ति का ही पैगंबर लगता है। व्यक्ति क
े अधिकारों क
े संबंध में उसक
े पास कोई दर्शन नहीं था जिसक
े
आधार पर स्वतंत्रता की धारणा को कोई यथार्थ रूप प्राप्त होता। वह समाज की कोई ऐसी पूर्ण कल्पना नहीं
कर पाया जिसमें राज्य और व्यक्ति का मिथ्या अंतर अपने आप लुप्त हो जाता। ‘’
कि
ं तु इन आलोचनाओं क
े बावजूद मिल का स्वतंत्रता संबंधी विचार विशेष रुप से वैचारिक स्वतंत्रता का सशक्त
समर्थन राजनीतिक दर्शन क
े इतिहास में उसे अनुपम स्थान प्रदान करता है।
प्रतिनिधि शासन क
े विषय में मिल क
े विचार
लोकतंत्र क
े जनक देश ग्रेट ब्रिटेन का निवासी होने क
े कारण जॉन स्टूअर्ट मिल लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का
स्वाभाविक रूप से समर्थक है और वह इसे सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानता है, हालांकि उसका विचार है कि लोकतंत्र
वहीं सफल हो सकता है जहां क
े नागरिक बौद्धिक और नैतिक विकास की दृष्टि से उत्क
ृ ष्ट हैं। लोकतांत्रिक शासन का
समर्थन करते हुए उसने लिखा कि ‘’इतिहास इस बात का साक्षी है कि स्वतंत्र मनुष्य और उनका समाज निरंक
ु श शासन
क
े स्थान पर लोकप्रिय अर्थात जनतांत्रिक व्यवस्था में ही अधिक समृद्ध हुए हैं, अतः लोकप्रिय शासन व्यवस्था सबसे
अच्छी शासन व्यवस्था है क्योंकि उसी में व्यक्ति क
े अधिकार सुरक्षित रहते हैं और उसकी सर्वोच्च बौद्धिक और नैतिक
क्षमता का विकास होता है।’
लोकतांत्रिक शासन क
े प्रत्यक्ष रूप क
े बजाय वह उसक
े अप्रत्यक्ष अर्थात प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र
का समर्थन करता है। अपनी पुस्तक ‘क
ं सीडरेशन ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट’ में प्रतिनिधि शासन की व्याख्या
करते हुए उसने लिखा है कि ‘’ प्रतिनिध्यात्मक शासन वह व्यवस्था है जिसमें संपूर्ण जन समुदाय या उसका
अधिकांश भाग अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों क
े माध्यम से अंतिम नियंत्रण शक्ति अर्थात संप्रभुता का प्रयोग करता
है।’’कि
ं तु यह प्रतिनिध्यात्मक शासन व्यवस्था तभी ज्यादा प्रभावी हो सकती है, जब इसमें विद्यमान दोषों को दूर
कर लिया जाए। अतः प्रतिनिधि शासन में सुधार क
े उद्देश्य से उसने क
ु छ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जिनकी विवेचना
निम्नांकित रूपों में की जा सकती है-
● संसद क
े गठन और उसक
े कार्य क
े विषय में सुझाव-
प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था विधायिका या संसद होती है। मिल ने द्विसदनात्मक संसद का
समर्थन किया है जिसमें प्रथम सदन का निर्माण जन सामान्य क
े प्रतिनिधियों से हो और दूसरा सदन ऐसे लोगों का
प्रतिनिधित्व करें जो राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य एवं उपलब्धि प्राप्त व्यक्ति हो।
संसद क
े कार्यों क
े विषय में मिल की मान्यता है कि इस सभा को प्रत्यक्ष रूप से विधि निर्माण का कार्य नहीं करना चाहिए
क्योंकि कानून निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया को विधि विशेषज्ञ ही पूर्ण कर सकते हैं, अतः संसद
का कार्य विधि विशेषज्ञों द्वारा निर्मित कानूनों को स्वीकार या अस्वीकार करना होना चाहिए। साथ ही उसे शासन का
नियंत्रण और निरीक्षण भी करना चाहिए। मिल सांसदों को वेतन -भत्ता देने का विरोधी है क्योंकि इसक
े कारण वे
व्यावसायिक राजनीतिज्ञ हो जाएंगे और राजनीति को लाभ- हानि का पेशा बना देंगे।
● निर्वाचन पद्धति में सुधार हेतु सुझाव-
प्रतिनिध्यात्मक शासन को अधिक प्रतिनिधित्व पूर्ण बनाने की दृष्टि से मिल ने प्रतिनिधियों को चुने जाने क
े लिए
अपनाई जाने वाली निर्वाचन व्यवस्था में सुधार क
े लिए निम्नांकित महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं-
1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली का समर्थन-
शासन व्यवस्था को अधिक प्रतिनिधित्व पूर्ण बनाने एवं बहुमत वर्ग की निरंक
ु शता को समाप्त कर अल्पसंख्यक वर्ग क
े
हितों को सुरक्षित करने क
े उद्देश्य से मिल ने सामान्य बहुमत प्रणाली क
े स्थान पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व की
प्रणाली का समर्थन किया, जिसक
े अंतर्गत बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाते हैं और मतदाता अपनी पसंद क
े
अनुसार मत देते हैं। जिस राजनीतिक दल को जितने अधिक मत प्राप्त होते हैं उसक
े अनुसार संसद में उसको
प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इस प्रणाली क
े कारण बड़े दलों क
े साथ अल्प संख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले छोटे
दलों को प्राप्त जनसमर्थन क
े अनुसार संसद में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है। प्रतिनिधित्व प्राप्त करने पर वे
संसद क
े भीतर बहुमत क
े अत्याचार क
े विरुद्ध आवाज उठा सकते हैं। इस प्रकार अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित
कर वह प्रजातंत्र को सर्वहितकारी बनाने का प्रयास करता है।
2. मताधिकार हेतु योग्यताओं का निर्धारण-
जनतांत्रिक शासन को प्रभावी बनाए रखने क
े लिए मिल ने मताधिकार क
े विस्तार का सुझाव तो दिया है, कि
ं तु वह
वयस्क मताधिकार का समर्थक नहीं है। वह मानता है कि मताधिकार प्रदान करने से पूर्व क
ु छ शैक्षणिक और संपत्ति
संबंधी योग्यताओं का निर्धारण किया जाना चाहिए,क्योंकि शिक्षित व्यक्ति ही समझदारी क
े साथ अपने मताधिकार का
प्रयोग कर उचित प्रतिनिधियों को चुन सकता है। अतः यह आवश्यक है कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से
पहले सार्वभौमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
शिक्षा क
े साथ-साथ व संपत्ति की योग्यता वह भी मताधिकार क
े लिए आवश्यक मानता है, अरस्तु क
े समान मिल
भी यह मानता है कि जिनक
े पास संपत्ति होती है, वे अपनी संपत्ति की रक्षा क
े निमित्त उन लोगों की तुलना में अधिक
उत्तरदायित्व पूर्ण ढंग से कार्य करते हैं जिनक
े पास संपत्ति का अभाव होता है। उसक
े अनुसार कर देने वालों को ही
कर लगाने का अधिकार होना चाहिए, तभी सार्वजनिक वित्त का सही उपयोग संभव है।
3. बहुल मताधिकार का समर्थन-
मिल प्रजातंत्र का एक बहुत बड़ा दोष यह मानता है कि इस व्यवस्था में योग्यता- अयोग्यता पर विचार किए बिना सभी
को समान महत्व प्रदान करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को एक ही वोट देने का अधिकार दिया जाता है, जिसक
े कारण
व्यवहार में प्रजातंत्र ‘ मूर्खों का शासन’ बनकर रह जाता है। प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र की इस बुराई को दूर करने
क
े उद्देश्य से मिल बहुल मताधिकार का समर्थन करता है । अर्थात योग्य एवं बुद्धिमान लोगों को वह एक से ज्यादा मत
देने क
े अधिकार का समर्थन करता है, ताकि प्रजातंत्र सिर्फ संख्या का ही नहीं, बल्कि गुणों पर आधारित शासन बन
सक
े ।
4. खुले मतदान का समर्थन-
सामान्यतः प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र में जनता गोपनीयता की पद्धति अपना कर अपने प्रतिनिधियों को चुनती है,
अर्थात मतदान प्रक्रिया गोपनीय होती है। मिल इसका विरोधी है क्योंकि वह यह मानता है कि मत देना एक पवित्र
सार्वजनिक कर्तव्य है, जिसे खुले तौर पर पूरी समझ और विवेक क
े अनुसार पूरा किया जाना चाहिए। गुप्त मतदान को
वह भ्रष्टाचार का साधन समझता था जिसक
े माध्यम से मतदाता आसानी से प्रत्याशियों को धोखा दे सकता था। वह
वादा किसी और से और मतदान किसी और क
े पक्ष में कर सकता था, मतों को क
् रय करने क
े लिए प्रलोभन दिए जा
सकते थे। इस प्रकार गुप्त मतदान मतदाता को चरित्र की दृष्टि से भ्रष्ट करता है और जनतंत्र का रूप विक
ृ त
करता है।
5. स्त्री मताधिकार का समर्थन -
मिल क
े समय तक ब्रिटेन जैसे देश में भी स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त नहीं था, क्योंकि उन्हें सार्वजनिक जीवन क
े
योग्य नहीं समझा जाता था। बेंथम क
े समान मिल ने भी स्त्री - पुरुष समानता में विश्वास रखते हुए स्त्रियों को
मताधिकार प्रदान किए जाने का समर्थन किया। अपनी पत्नी क
े उदात्त स्वभाव से प्रभावित होकर उसने इसक
े पक्ष में
यह तर्क दिया कि स्त्रियों क
े सार्वजनिक जीवन में पदार्पण से जन साधारण क
े सामान्य विश्वास और भावनाओं पर
उदात्त प्रभाव पड़ेगा और समाज को उनक
े मानसिक गुणों से लाभान्वित होने का अवसर मिलेगा’’। उसने यह भी तर्क
दिया कि यदि स्त्री को शारीरिक रूप से निर्बल समझा जाता है, तब भी उसे मताधिकार की अधिक आवश्यकता है
क्योंकि उसे अपनी रक्षा क
े लिए राज्य और समाज पर अधिक निर्भर होना होता है। स्त्री की सुरक्षा और समाज क
े
विकास दोनों ही दृष्टि से स्त्री मताधिकार आवश्यक है।
आलोचना-
स्वतंत्रता संबंधी विचारों क
े समान ही प्रतिनिधि शासन क
े विषय में भी मिल क
े द्वारा व्यक्त किए गए विचारों की
आलोचकों ने नाना आधारों पर आलोचना की, जिनमें से क
ु छ प्रमुख इस प्रकार है-
● लोकतंत्र में बहुमत की निरंक
ु शता क
े प्रति मिल जरूरत से क
ु छ ज्यादा ही चिंतित है। लोकतंत्र भले ही बहु
संख्या का शासन होता है, कि
ं तु उसे अल्पमत का ध्यान रखना होता है, अन्यथा सामाजिक शांति और सौहार्द
खतरे में पड़ता है, अतः बहुमत और अल्पमत क
े संबंधों की सही व्याख्या करने की आवश्यकता है, न कि
आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली को अपनाया जाने की।
● आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली एक जटिल प्रणाली है, जो सामान्य मतदाता की समझ से परे है, व्यापक
रूप में इसे व्यवहार में अपनाना संभव नहीं है।
● गुप्त मतदान क
े क
ु छ दोष हो सकते हैं लेकिन इसकी सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि इसमें मतदाता बिना किसी
भय क
े अपनी इच्छा अनुसार इच्छित प्रत्याशी को मत दे सकता है। यदि इसे खुला कर दिया गया तो
मतदाता धनबल और गुंडों क
े आतंक से आतंकित होकर मतदान करने क
े लिए विवश होगा या मतदान करेगा
ही नहीं।
● मिल द्वारा किया गया बहुल मताधिकार का समर्थन जनतंत्र को क
ु लीन तंत्र में परिवर्तित कर देगा। यह
लोकतंत्र क
े समानता क
े सिद्धांत क
े नितांत विपरीत है। योग्यता का वस्तुनिष्ठ मापदंड विकसित करना अत्यंत
कठिन है। शैक्षिक योग्यता एक मापदंड हो सकती है लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि हर शिक्षित व्यक्ति
बुद्धिमान भी होगा।
● मताधिकार को संपत्ति और शिक्षा क
े आधार पर प्रदान करने का विचार भी लोकतंत्र विरोधी है। आज दुनिया
क
े सभी लोकतांत्रिक देशों में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का विचार अपनाया जाता है।
स्पष्ट है कि स्वतंत्रता और प्रतिनिधि शासन क
े विषय में मिल क
े विचार दोष रहित नहीं है, फिर भी राजनीतिक चिंतन
को उसकी देन महत्वपूर्ण है। वह अपने युग का अग्रणी उदारवादी था और उसक
े चिंतन ने अपने युग को गहराई से
प्रभावित किया । बाउले ने उसका मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि ‘’यदि चिंतन का स्तर नीतियों को प्रभावित
करने की दृष्टि से आंका जाए तो मिल का स्तर बहुत ऊ
ं चा आंका जाना चाहिए। एक तर्क शास्त्री, अर्थशास्त्री तथा
एक राजनीतिक चिंतक क
े रूप में वह अपने समय का एक पैगंबर माना जाता था। ‘’ हरबर्ट स्पेंसर ने भी लिखा है कि ‘’
मानव कल्याण क
े संवर्धन की उग्र इच्छा ही एकमात्र वह कारण था जिसक
े प्रति उसने स्वयं को समर्पित कर दिया
था। ‘’
निष्कर्ष-
उपर्युक्त विवेचन क
े आधार पर मिलकर राजनीतिक चिंतन क
े संबंध में क
ु छ निष्कर्ष निम्न वत हैं-
● जे. एस. मिल 19वीं शताब्दी का प्रभावी उदारवादी विचारक हैं।
● बेंथम क
े उपयोगिता वादी चिंतन में संशोधन करने वाला मिल अंतिम उपयोगिता वादी विचारक है।
● ब्रिटिश राजनीति में भाग लेने वाला और सांसद क
े रूप में चुना जाने वाले मिल क
े राजनीतिक विचार तर्क एवं
अनुभव पर आधारित हैं।
● व्यक्तिगत स्वतंत्रता क
े समर्थन में मिल द्वारा दिए गए तर्क महत्वपूर्ण है।
● समाज क
े विकास क
े लिए प्रतिबंध रहित वैचारिक स्वतंत्रता अपरिहार्य है।
● राष्ट्र की प्रादेशिक अखंडता, सुरक्षा, सार्वजनिक दायित्व का निर्वहन एवं व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से राज्य
और समाज क
े द्वारा व्यक्ति की कार्य की स्वतंत्रता पर उचित सीमाएं लगाई जा सकती हैं।
● मिल की दृष्टि में लोकतंत्र सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था है।
● प्रतिनिधि शासन में क
ु छ सुधार कर उसे सर्वोत्तम बनाया जा सकता है।
● खुला मतदान, बहुल मतदान, शिक्षा एवं संपत्ति आधारित मताधिकार एवं आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली
को अपनाकर प्रतिनिधि शासन क
े दोषों को दूर किया जा सकता है।
● मिल की दृष्टि में प्रतिनिधि शासन में संसद का कार्य कानून बनाना ना होकर शासन पर नियंत्रण स्थापित
करना होना चाहिए और कानून निर्माण का कार्य विधि विशेषज्ञों की समिति क
े द्वारा किया जाना चाहिए।
REFERENCES AND SUGGESTED READING
● Prabhudatt Sharma ,Pashchatya Rajnitik Chintan
● Stanford Encyclopaedia of Philosophy,plata.stanford.edu
● Journals.sagepub.com
● J. S. Mill on Democracy,Freedom and Meritocracy,www.jstor.org
● Routledge Encyclopaedia Of Philosophy,rep.routledge.com
प्रश्न-
निबंधात्मक-
1. एक उदारवादी विचारक क
े रूप में मिल क
े विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
2. मिल की दृष्टि में स्वतंत्रता क्या है। उसक
े किन रूपों की विवेचना मिल क
े द्वारा की गई है।
3. ‘’ जे. एस. मिल खोखली स्वतंत्रता का पैगंबर है’’, बार्कर क
े इस कथन क
े संबंध में मिल क
े स्वतंत्रता संबंधी
विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
4. प्रतिनिधि शासन क
े दोषों को दूर करने क
े लिए मिल क
े द्वारा क्या सुझाव दिए गए, विवेचना कीजिए। उसकी दृष्टि
में सर्वोत्तम शासन व्यवस्था कौन सी है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
1. निम्नलिखित में से कौन सी पुस्तक मिल द्वारा नहीं लिखी गई है।
[ अ ] ऑन लिबर्टी [ ब ] क
ं सीडरेशन ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट [ स ] सजेशन ऑन रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट [ द ]
उपर्युक्त में से कोई नहीं।
2. मिल की स्वतंत्रता की धारणा क
े विषय में कौन सा कथन सत्य है।
[ अ ] मिल की स्वतंत्रता की धारणा नकारात्मक है।
[ ब ] उसकी स्वतंत्रता की धारणा में अधिकारों का कोई उल्लेख नहीं है।
[स ] वैचारिक स्वतंत्रता प्रतिबंध रहित होनी चाहिए।
[ द ] उपर्युक्त सभी सत्य है।
3. मिल क
े अनुसार व्यक्ति क
े किन कार्यों की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
[ अ ] स्व- संबंधी [ ब ] पर- संबंधी[ स ] सार्वजनिक कार्य संबंधी [ द ]’ ब’और’ स’ दोनों सही हैं।
4. मिल की दृष्टि में वैचारिक स्वतंत्रता क्यों आवश्यक है।
[ अ ] किसी विषय क
े संबंध में सत्य को जानने क
े लिए
[ ब ] नए विचारों क
े आधार पर समाज क
े विकास क
े लिए
[ स ] उपर्युक्त दोनों दृष्टिकोण से
[ द ] उपरोक्त में से कोई नहीं
5. मिल ने ब्रिटिश राजनीति में किबाबा नया सालस राजनीतिक दल क
े उम्मीदवार क
े रूप में संसद क
े निर्वाचन में भाग
लिया था।
[ अ ] अनुदारवादी दल [ ब ] उदारवादी दल [ स ] मजदूर दल [ द ] रिपब्लिकन दल
6. मिल ने स्त्री मताधिकार को क्यों उपयोगी बताया।
[ अ ] स्त्रियों क
े मानसिक गुणों का लाभ सार्वजनिक जीवन को उपलब्ध कराने की दृष्टि से
[ ब ] शारीरिक दुर्बलता क
े कारण महिलाओं की कानून पर अधिक निर्भरता क
े कारण
[ स ] उपर्युक्त दोनों
[ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं
7. मिल द्वारा खुले मताधिकार का समर्थन किस आधार पर किया गया।
[ अ ] मतदान एक सार्वजनिक कर्तव्य है, जिस क
े पालन में पारदर्शिता होनी चाहिए।
[ ब ] मतदाताओं की चारित्रिक भ्रष्टता को रोकने क
े लिए
[ स ] उपर्युक्त दोनों सही है।
[ द ] ‘अ’सही कि
ं तु ‘ब’ गलत है।
8. मिल क
े द्वारा स्त्री मताधिकार का समर्थन किस क
े गुणों से प्रभावित होकर किया गया।
[ अ ] माता [ ब ] पिता [ स ] पत्नी [ द ] उपरोक्त सभी
9. शासन में अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने की दृष्टि से मिल क
े द्वारा किस निर्वाचन पद्धति का सुझाव
दिया गया।
[ अ ] सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली [ ब ] अल्पसंख्यकों को आरक्षण [ स ] आनुपातिक प्रतिनिधित्व की
प्रणाली [ द ] व्यावसायिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली
10. मिल क
े द्वारा बहुल मताधिकार का समर्थन किस आधार पर किया गया।
[ अ ] शिक्षित और संपत्ति वान लोगों को शासन में प्रतिनिधित्व प्रदान करने क
े लिए
[ ब ] सार्वजनिक जीवन में शिक्षा और संपत्ति क
े महत्व को स्थापित करने क
े लिए
[ स ] प्रजातंत्र में संख्या क
े साथ- साथ गुण क
े मिश्रण क
े लिए
[ द ] उपर्युक्त सभी क
े लिए
उत्तर- 1. स 2.द 3. द 4. स 5.ब 6. स 7. स 8.स स 9. स 10. स

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J. s. mil ka rajnitik darshan

  • 1. जॉन स्टूअर्ट मिल का राजनीतिक चिंतन https://ichef.bbci.co.uk/images/ic/640x360/p06ll7w7.jpg [ 1806-1873] द्वारा- डॉक्टर ममता उपाध्याय एसोसिएट प्रोफ े सर, राजनीति विज्ञान क ु मारी मायावती राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय बादलपुर, गौतम बुध नगर उद्देश्य- ● राजनीतिक दर्शन क े इतिहास में जॉन स्टूअर्ट मिल क े योगदान की जानकारी ● राजनीतिक चिंतन में स्वतंत्रता की अवधारणा क े संदर्भ में मिल क े विचारों की जानकारी ● प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र में सुधार क े लिए मिल द्वारा दिए गए सुझाव की जानकारी ● लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यक्ति क े अधिकारों और राज्य की सत्ता क े मध्य सामंजस्य क े विषय में स्वतंत्र चिंतन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना
  • 2. जॉन स्टूअर्ट मिल 19वीं शताब्दी का सर्वाधिक प्रभावी अंग्रेज दार्शनिक,राजनीतिक अर्थ शास्त्री, संसद सदस्य और लोक सेवक है । उसका चिंतन प्रक ृ तिवाद, उपयोगितावाद, व्यक्तिवाद और उदारवाद का सुंदर समन्वय है। उसक े चिंतन का योगदान सामाजिक सिद्धांत, राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक अर्थव्यवस्था तक विस्तृत है। बेंथम द्वारा प्रतिपादित राज्य क े उपयोगिता वादी सिद्धांत में आवश्यक संशोधन कर मिल ने उसे युगानुरूप बनाया। उसे अंतिम उपयोगितावाद विचारक क े रूप में भी जाना जाता है। एक उदारवादी विचारक क े रूप में उसने अपने निबंध ‘एस्से ऑन लिबर्टी’ में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की जो यथार्थवादी धारणा दी और जिस गौरव पूर्ण ढंग से वैचारिक स्वतंत्रता का समर्थन किया, उसक े कारण उसने मिल्टन और जैफर्सन जैसे चिंतकों क े मध्य सम्मान पूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया । वेपर ने उसक े योगदान को स्वीकार करते हुए लिखा है कि ‘’ विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लिखे गए इस अद्वितीय और ओजस्वी निबंध ने मिल को विश्व क े लोकतंत्र समर्थकों क े मध्य सम्माननीय स्थान प्रदान कर दिया है। ‘’ आधुनिक युग में उसक े चिंतन ने जॉन रॉल्स, रॉबर्ट नोजिक ,कि ं स ,बरतरेंड रसल , कॉल पापर और इसाह बर्लिन क े विचारों को प्रभावित किया। जीवन एवं व्यक्तित्व- जे. एस. मिल का जन्म अपने पिता जेम्स मिल क े ओजस्वी संतान क े रूप में 1806 में लंदन में हुआ था। वह बेंथम का प्रमुख शिष्य था और अपने पिता क े संरक्षण और अनुशासन में उसकी शिक्षा का क ् रम बाल्यावस्था में ही शुरू हो गया था। तर्क शास्त्र ,राजनीति शास्त्र, मनोविज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थ शास्त्र, ग्रीक, लैटिन और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन कर 16 वर्ष की आयु में ही वह प्रकांड विद्वान बन चुका था, कि ं तु औपचारिक रूप में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु वह कभी किसी विश्वविद्यालय में नहीं गया। शिक्षा पूरी करने क े बाद अपने पिता क े अधीन उसने जूनियर क्लर्क की नौकरी प्रारंभ की। उसक े पिता ईस्ट इंडिया क ं पनी में कार्मिक थे जिन्हें उनक े पद की प्राप्ति ‘ हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’ लिखने क े कारण प्राप्त हुई थी। अपनी प्रतिभा क े बल पर मिल शीघ्र ही उच्च पदों पर पदोन्नत होता गया । बाल्यावस्था में ही शिक्षा क े तीव्र क ् रम ने युवावस्था में उसे अवसादी बना दिया, जिसे दूर करने का कार्य श्रीमती हैरियट ट्रेलर क े द्वारा किया गया जो बाद में उनकी पत्नी भी बनी। मिल क े लेखन पर श्रीमती टेलर का अत्यधिक प्रभाव है, जिसकी स्वीकारोक्ति स्वयं मिल क े द्वारा अपनी आत्मकथा में की गई है। उसने अपना सुप्रसिद्ध निबंध’ एस्से ऑन लिबर्टी’ अपनी पत्नी को ही आभार स्वरूप समर्पित किया है। एक विद्वान और दार्शनिक होने क े साथ-साथ
  • 3. क्रियात्मक राजनीति क े क्षेत्र में भी मिल को अत्यधिक सफलता प्राप्त हुई। 1866 में वह ब्रिटिश संसद का सदस्य चुना गया और सांसद रहते हुए उसने महिला मताधिकार, अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व और खुले मतदान का समर्थन किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री ग्लाइडस्टन उससे बहुत प्रभावित थे, हालांकि ब्रिटिश जनता ने उसक े विचारों और कार्यों को पसंद नहीं किया, अतः एक सक्रिय राजनीतिज्ञ क े रूप में उसका जीवन काल बहुत लंबा नहीं रहा। 1873 में फ ् रांस क े एविग्नन नगर में उसका देहांत हो गया। रचनाएं- मिल ने अपने जीवन काल में कई क ृ तियों की रचना की, जिनमें से क ु छ प्रमुख इस प्रकार हैं- ● सिस्टम ऑफ लॉजिक ● द प्रिंसिपल्स ऑफ़ पॉलीटिकल इकोनामी ● ऑन लिबर्टी ● क ं सीडरेशन ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट ● यूटिलिटेरिएनिज्म ● थॉट्स ऑन पार्लियामेंट्री रिफॉर्म ● द सब्जेक्शन ऑफ वूमेन ● ऑटोबायोग्राफी प्रमुख राजनीतिक विचार 1. स्वतंत्रता संबंधी धारणा- मिल एक उदारवादी विचारक है और इसी कारण वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहुत ज्यादा महत्व देता है। उसक े स्वतंत्रता संबंधी विचारों पर जोसेफ प्रीस्टले और जोसिया वारेन का प्रभाव है । उसक े स्वतंत्रता संबंधी विचार शासन की निरंक ु शता क े विरुद्ध एक घोषणापत्र क े रूप में मान्य है । ● स्वतंत्रता क्यों महत्वपूर्ण है- स्वतंत्रता क े विचार पर चिंतन करते हुए मिल ने स्वतंत्रता क े महत्व का प्रतिपादन किया। उसकी दृष्टि में स्वतंत्रता की आवश्यकता दो कारणों से है- प्रथम, व्यक्ति क े व्यक्तित्व विकास क े लिए और द्वितीय, सामाजिक विकास क े लिए। प्रत्येक व्यक्ति क े जीवन का मूल उद्देश्य अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है और यह विकास स्वतंत्रता
  • 4. क े वातावरण में ही संभव है, अतः व्यक्ति क े लिए स्वतंत्रता आवश्यक है। समाज क े विकास क े लिए भी आवश्यक है कि व्यक्तियों क े द्वारा विभिन्न सार्वजनिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप में चिंतन किया जाए और उसकी अभिव्यक्ति की जाए। नवीन विचारों की अभिव्यक्ति क े कारण ही समाज प्रगति क े पथ पर अग्रसर होता है, अतः स्वतंत्रता समाज क े विकास की दृष्टि से भी एक आवश्यक दशा है। ● स्वतंत्रता का स्वरूप- मिल ने स्वतंत्रता क े 2 स्वरूपों का वर्णन किया है। प्रथम, पूर्ण स्वतंत्रता और द्वितीय नियंत्रित या संयमित स्वतंत्रता। स्वतंत्रता क े इन दोनों रूपों का विवेचन करते हुए मिल ने व्यक्ति क े कार्यों को दो भागों में विभाजित किया है -1. स्व - संबंधी कार्य 2. पर- संबंधी कार्य। स्व -संबंधी कार्यों का संबंध व्यक्ति क े निहायत व्यक्तिगत जीवन से है। उनका प्रभाव दूसरों पर नहीं पड़ता। मिल का विचार है कि व्यक्तिगत जीवन से संबंधित कार्यों क े विषय में व्यक्ति को वहां तक पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए जहां तक उसका असर दूसरों की स्वतंत्रता पर नहीं पड़ रहा है। पर -संबंधी कार्यों का असर दूसरों पर पड़ता है, अतः राज्य और समाज को क ु छ हद तक इन कार्यों पर नियंत्रण स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। मिल इसे संयमित स्वतंत्रता का नाम देता है। मिल ने इस संबंध में उदाहरण दिया है कि यदि एक पुल क े टूटने की आशंका है तो किसी व्यक्ति को उस पुल पर जाने से रोका जा सकता है, क्योंकि पुल टूटने का प्रभाव न क े वल उस व्यक्ति पर पड़ेगा, अपितु अप्रत्यक्ष रूप से समाज को भी उस की हानि उठानी पड़ेगी। ● स्वतंत्रता क े प्रकार- स्वतंत्रता क े स्वरूप पर चर्चा करने क े बाद मिल ने उसक े प्रकारों की व्याख्या की है। वह मुख्यतः स्वतंत्रता क े दो प्रकार मानता है- ● विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- प्रत्येक व्यक्ति को निर्बाध रूप से किसी विषय पर विचार करने और विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए, ऐसी मिल की मान्यता है। वैचारिक स्वतंत्रता क े अंतर्गत अंतःकरण की स्वतंत्रता, चिंतन की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सम्मिलित है। वैचारिक स्वतंत्रता क े विषय में मिल का कथन है कि ‘’यदि एक व्यक्ति क े अतिरिक्त संपूर्ण मानव जाति एक मत हो, तब भी मानव जाति को जबरदस्ती उस व्यक्ति को चुप करने का अधिकार वैसे ही नहीं है जैसे उस व्यक्ति को संपूर्ण मानव जाति को चुप करने का अधिकार नहीं है।’’ मिल क े द्वारा वैचारिक स्वतंत्रता का समर्थन कई आधार पर किया गया है। जैसे- ● मिल की मान्यता है कि सत्य क े विभिन्न पक्ष होते हैं और वास्तविक सत्य तभी प्रकट हो पाता है जब हम उसक े विभिन्न पक्षों पर स्वतंत्र अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करें। विचार अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने का तात्पर्य सत्य का दमन करना है। वैचारिक स्वतंत्रता इतनी महत्वपूर्ण है कि यह समाज में एक सनकी व्यक्ति को भी प्राप्त होनी चाहिए क्योंकि इस सनकपन में ही हो सकता है कि उसक े द्वारा क ु छ ऐसे विचार व्यक्त किए जाएं जो संपूर्ण समाज क े लिए कल्याणकारी हो। इतिहास से उदाहरण देते हुए मिल यह कहता है कि ‘’ मानव जाति को बार-बार यह बताने की जरूरत नहीं है कि किसी समय में यूनान में सुकरात नाम का एक व्यक्ति
  • 5. हुआ था जिसक े विचार समाज क े अधिकांश व्यक्तियों क े विचारों से भिन्न थे और समाज क े ठेक े दारों में सुकरात को उसक े भिन्न विचारों क े कारण विषपान का दंड दिया था जबकि सत्य है कि उन व्यक्तियों क े विचार गलत और सुकरात क े विचार सही थे। ‘’ उसक े शब्दों में,’’ कोई भी समाज जिसमें सनकी पन उपहास और तिरस्कार का विषय हो, एक पूर्ण समाज और राज्य नहीं हो सकता। ‘’ 2. कार्य की स्वतंत्रता- स्वतंत्रता का दूसरा प्रमुख प्रकार कार्य की स्वतंत्रता है। हालांकि मिल की मान्यता है कि विचार और कार्य की स्वतंत्रता एक ही सिक्के क े दो पहलू हैं क्योंकि बिना कार्य गत स्वतंत्रता क े वैचारिक स्वतंत्रता अपूर्ण है । स्वतंत्र कार्य क े अभाव में स्वतंत्र चिंतन वैसा ही है जैसे कोई पक्षी उड़ना तो चाहता हो , लेकिन उसक े पंख नहीं उड़ते हो। कि ं तु कार्यगत स्वतंत्रता को मिल वैचारिक स्वतंत्रता की तरह निर्बाध नहीं मानता और समाज हित में उस पर प्रतिबंध लगाए जाने का समर्थन करता है। यदि व्यक्ति क े किसी कार्य से संपूर्ण समाज का अहित होता हो और स्वयं उसका भी विकास बाधित होता हो तो ऐसी स्थिति में राज्य हस्तक्षेप करक े व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। वर्तमान में विभिन्न राज्यों में स्वतंत्रता की इसी धारणा पर अमल किया जाता है। मिल ने भी चार आधारों पर कार्य गत स्वतंत्रता को सीमित करने का समर्थन किया है- 1. अपने कार्यों से दूसरों को हानि पहुंचाना 2. समाज की आंतरिक शांति और सुरक्षा को संकटग्रस्त करना 3. सार्वजनिक कर्तव्य क े पालन में अवरोध उपस्थित होना 4. स्वयं व्यक्ति क े व्यक्तित्व को हानि पहुंचाना इस प्रकार मिल कार्यरत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहता है कि ‘’ समाज या राज्य मनुष्य आचरण की क े वल उसी भाग को नियंत्रित करने का अधिकारी है जो दूसरे व्यक्तियों से संबंधित है। आचरण का जो भाग स्वयं उससे संबंधित है उसमें उसकी स्वतंत्रता पूर्ण है। ‘’ अपने शरीर, मस्तिष्क और आत्मा पर व्यक्ति संप्रभु है।’’ आलोचना- मिल की स्वतंत्रता संबंधी धारणा पर आलोचकों क े द्वारा निम्नांकित आधारों पर आक्षेप किया गया है- ● मिल द्वारा व्यक्त यह विचार कि ‘व्यक्ति अपने मस्तिष्क, अपनी आत्मा और अपने ऊपर संप्रभु है’ व्यक्ति को अपने हितों का सर्वोत्तम निर्णय कर्ता बना देता है, जबकि व्यावहारिक दृष्टि से ऐसा हमेशा संभव नहीं होता क्योंकि मानव का जीवन दिनों दिन जटिल होता जा रहा है और व्यक्ति की भौतिक, बौद्धिक नैतिक आवश्यकताओं का उसकी अपेक्षा समाज ही अधिक अच्छी तरह निर्णय कर सकता है। अर्थात मिल का व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विचार सामाजिक जीवन की वास्तविकता ओं से संगति नहीं रखता।
  • 6. ● आलोचक यह भी मानते हैं कि सनकी लोगों को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करना समाज क े लिए अहितकर होगा। सर लेस्ली स्टीफन , प्रोफ े सर मैक्कन आदि का मंतव्य है कि झक्की लोगों और सनकियों को सुकरात और ईसा मसीह जैसे अलौकिक एवं दिव्य पुरुषों की श्रेणी में रखना उनक े व्यक्तित्व की महानता को न समझ पाना है। ● प्रोफ े सर से वाहन का मत है कि मानवीय कार्यों को स्व- संबंधी और पर -संबंधी श्रेणियों में विभाजित करना एक बचकाना कार्य है, क्योंकि कोई भी कार्य ऐसा नहीं होता जिसक े परिणाम कार्य करने वाले व्यक्ति तक ही सीमित रहें। जैसे शराब पीना प्रथम दृष्टया व्यक्तिगत कार्य लगता है कि ं तु अत्यधिक मद्यपान करने से व्यक्ति समाज का उपयोगी सदस्य नहीं रह जाता है और इसका दुष्प्रभाव उसक े परिवार और समाज क े अन्य सदस्यों को भुगतना पड़ता है। ● मिल ने सत्य क े उद्घाटन क े लिए वैचारिक तर्क -वितर्क को आवश्यक माना है, कि ं तु व्यवहार में हर व्यक्ति क े अंदर इतनी बौद्धिक क्षमता नहीं होती कि वह विषय क े विभिन्न पहलुओं पर तर्क कर सक े । यदि प्रत्येक व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी तर्क करने लग जाए, तो इसक े परिणाम व्यापक रूप से बहुत अच्छे नहीं होंगे। ● मिल की स्वतंत्रता संबंधी धारणा पूर्णतः निषेधात्मक है। वह नहीं बता पाता की मूलतः स्वतंत्रता क्या है और इसकी प्राप्ति क े लिए कौन-कौन सी परिस्थितियां राज्य द्वारा प्रदान की जानी चाहिए। अर्थात अधिकारों क े स्पष्ट दर्शन क े अभाव में स्वतंत्रता की मूल अवधारणा मूर्त रूप धारण नहीं कर सकती। प्रोफ़ े सर बार्कर ने लिखा है, ‘’मिल, उसकी बचत क े लिए काफी गुंजाइश छोड़ देने पर भी हमें खोखली स्वतंत्रता और काल्पनिक व्यक्ति का ही पैगंबर लगता है। व्यक्ति क े अधिकारों क े संबंध में उसक े पास कोई दर्शन नहीं था जिसक े आधार पर स्वतंत्रता की धारणा को कोई यथार्थ रूप प्राप्त होता। वह समाज की कोई ऐसी पूर्ण कल्पना नहीं कर पाया जिसमें राज्य और व्यक्ति का मिथ्या अंतर अपने आप लुप्त हो जाता। ‘’ कि ं तु इन आलोचनाओं क े बावजूद मिल का स्वतंत्रता संबंधी विचार विशेष रुप से वैचारिक स्वतंत्रता का सशक्त समर्थन राजनीतिक दर्शन क े इतिहास में उसे अनुपम स्थान प्रदान करता है। प्रतिनिधि शासन क े विषय में मिल क े विचार लोकतंत्र क े जनक देश ग्रेट ब्रिटेन का निवासी होने क े कारण जॉन स्टूअर्ट मिल लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का स्वाभाविक रूप से समर्थक है और वह इसे सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानता है, हालांकि उसका विचार है कि लोकतंत्र वहीं सफल हो सकता है जहां क े नागरिक बौद्धिक और नैतिक विकास की दृष्टि से उत्क ृ ष्ट हैं। लोकतांत्रिक शासन का समर्थन करते हुए उसने लिखा कि ‘’इतिहास इस बात का साक्षी है कि स्वतंत्र मनुष्य और उनका समाज निरंक ु श शासन
  • 7. क े स्थान पर लोकप्रिय अर्थात जनतांत्रिक व्यवस्था में ही अधिक समृद्ध हुए हैं, अतः लोकप्रिय शासन व्यवस्था सबसे अच्छी शासन व्यवस्था है क्योंकि उसी में व्यक्ति क े अधिकार सुरक्षित रहते हैं और उसकी सर्वोच्च बौद्धिक और नैतिक क्षमता का विकास होता है।’ लोकतांत्रिक शासन क े प्रत्यक्ष रूप क े बजाय वह उसक े अप्रत्यक्ष अर्थात प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र का समर्थन करता है। अपनी पुस्तक ‘क ं सीडरेशन ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट’ में प्रतिनिधि शासन की व्याख्या करते हुए उसने लिखा है कि ‘’ प्रतिनिध्यात्मक शासन वह व्यवस्था है जिसमें संपूर्ण जन समुदाय या उसका अधिकांश भाग अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों क े माध्यम से अंतिम नियंत्रण शक्ति अर्थात संप्रभुता का प्रयोग करता है।’’कि ं तु यह प्रतिनिध्यात्मक शासन व्यवस्था तभी ज्यादा प्रभावी हो सकती है, जब इसमें विद्यमान दोषों को दूर कर लिया जाए। अतः प्रतिनिधि शासन में सुधार क े उद्देश्य से उसने क ु छ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जिनकी विवेचना निम्नांकित रूपों में की जा सकती है- ● संसद क े गठन और उसक े कार्य क े विषय में सुझाव- प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था विधायिका या संसद होती है। मिल ने द्विसदनात्मक संसद का समर्थन किया है जिसमें प्रथम सदन का निर्माण जन सामान्य क े प्रतिनिधियों से हो और दूसरा सदन ऐसे लोगों का प्रतिनिधित्व करें जो राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य एवं उपलब्धि प्राप्त व्यक्ति हो। संसद क े कार्यों क े विषय में मिल की मान्यता है कि इस सभा को प्रत्यक्ष रूप से विधि निर्माण का कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि कानून निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया को विधि विशेषज्ञ ही पूर्ण कर सकते हैं, अतः संसद का कार्य विधि विशेषज्ञों द्वारा निर्मित कानूनों को स्वीकार या अस्वीकार करना होना चाहिए। साथ ही उसे शासन का नियंत्रण और निरीक्षण भी करना चाहिए। मिल सांसदों को वेतन -भत्ता देने का विरोधी है क्योंकि इसक े कारण वे व्यावसायिक राजनीतिज्ञ हो जाएंगे और राजनीति को लाभ- हानि का पेशा बना देंगे। ● निर्वाचन पद्धति में सुधार हेतु सुझाव- प्रतिनिध्यात्मक शासन को अधिक प्रतिनिधित्व पूर्ण बनाने की दृष्टि से मिल ने प्रतिनिधियों को चुने जाने क े लिए अपनाई जाने वाली निर्वाचन व्यवस्था में सुधार क े लिए निम्नांकित महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं- 1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली का समर्थन- शासन व्यवस्था को अधिक प्रतिनिधित्व पूर्ण बनाने एवं बहुमत वर्ग की निरंक ु शता को समाप्त कर अल्पसंख्यक वर्ग क े हितों को सुरक्षित करने क े उद्देश्य से मिल ने सामान्य बहुमत प्रणाली क े स्थान पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली का समर्थन किया, जिसक े अंतर्गत बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाते हैं और मतदाता अपनी पसंद क े अनुसार मत देते हैं। जिस राजनीतिक दल को जितने अधिक मत प्राप्त होते हैं उसक े अनुसार संसद में उसको प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इस प्रणाली क े कारण बड़े दलों क े साथ अल्प संख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले छोटे दलों को प्राप्त जनसमर्थन क े अनुसार संसद में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है। प्रतिनिधित्व प्राप्त करने पर वे संसद क े भीतर बहुमत क े अत्याचार क े विरुद्ध आवाज उठा सकते हैं। इस प्रकार अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर वह प्रजातंत्र को सर्वहितकारी बनाने का प्रयास करता है।
  • 8. 2. मताधिकार हेतु योग्यताओं का निर्धारण- जनतांत्रिक शासन को प्रभावी बनाए रखने क े लिए मिल ने मताधिकार क े विस्तार का सुझाव तो दिया है, कि ं तु वह वयस्क मताधिकार का समर्थक नहीं है। वह मानता है कि मताधिकार प्रदान करने से पूर्व क ु छ शैक्षणिक और संपत्ति संबंधी योग्यताओं का निर्धारण किया जाना चाहिए,क्योंकि शिक्षित व्यक्ति ही समझदारी क े साथ अपने मताधिकार का प्रयोग कर उचित प्रतिनिधियों को चुन सकता है। अतः यह आवश्यक है कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से पहले सार्वभौमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए। शिक्षा क े साथ-साथ व संपत्ति की योग्यता वह भी मताधिकार क े लिए आवश्यक मानता है, अरस्तु क े समान मिल भी यह मानता है कि जिनक े पास संपत्ति होती है, वे अपनी संपत्ति की रक्षा क े निमित्त उन लोगों की तुलना में अधिक उत्तरदायित्व पूर्ण ढंग से कार्य करते हैं जिनक े पास संपत्ति का अभाव होता है। उसक े अनुसार कर देने वालों को ही कर लगाने का अधिकार होना चाहिए, तभी सार्वजनिक वित्त का सही उपयोग संभव है। 3. बहुल मताधिकार का समर्थन- मिल प्रजातंत्र का एक बहुत बड़ा दोष यह मानता है कि इस व्यवस्था में योग्यता- अयोग्यता पर विचार किए बिना सभी को समान महत्व प्रदान करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को एक ही वोट देने का अधिकार दिया जाता है, जिसक े कारण व्यवहार में प्रजातंत्र ‘ मूर्खों का शासन’ बनकर रह जाता है। प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र की इस बुराई को दूर करने क े उद्देश्य से मिल बहुल मताधिकार का समर्थन करता है । अर्थात योग्य एवं बुद्धिमान लोगों को वह एक से ज्यादा मत देने क े अधिकार का समर्थन करता है, ताकि प्रजातंत्र सिर्फ संख्या का ही नहीं, बल्कि गुणों पर आधारित शासन बन सक े । 4. खुले मतदान का समर्थन- सामान्यतः प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र में जनता गोपनीयता की पद्धति अपना कर अपने प्रतिनिधियों को चुनती है, अर्थात मतदान प्रक्रिया गोपनीय होती है। मिल इसका विरोधी है क्योंकि वह यह मानता है कि मत देना एक पवित्र सार्वजनिक कर्तव्य है, जिसे खुले तौर पर पूरी समझ और विवेक क े अनुसार पूरा किया जाना चाहिए। गुप्त मतदान को वह भ्रष्टाचार का साधन समझता था जिसक े माध्यम से मतदाता आसानी से प्रत्याशियों को धोखा दे सकता था। वह वादा किसी और से और मतदान किसी और क े पक्ष में कर सकता था, मतों को क ् रय करने क े लिए प्रलोभन दिए जा सकते थे। इस प्रकार गुप्त मतदान मतदाता को चरित्र की दृष्टि से भ्रष्ट करता है और जनतंत्र का रूप विक ृ त करता है। 5. स्त्री मताधिकार का समर्थन - मिल क े समय तक ब्रिटेन जैसे देश में भी स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त नहीं था, क्योंकि उन्हें सार्वजनिक जीवन क े योग्य नहीं समझा जाता था। बेंथम क े समान मिल ने भी स्त्री - पुरुष समानता में विश्वास रखते हुए स्त्रियों को मताधिकार प्रदान किए जाने का समर्थन किया। अपनी पत्नी क े उदात्त स्वभाव से प्रभावित होकर उसने इसक े पक्ष में यह तर्क दिया कि स्त्रियों क े सार्वजनिक जीवन में पदार्पण से जन साधारण क े सामान्य विश्वास और भावनाओं पर उदात्त प्रभाव पड़ेगा और समाज को उनक े मानसिक गुणों से लाभान्वित होने का अवसर मिलेगा’’। उसने यह भी तर्क
  • 9. दिया कि यदि स्त्री को शारीरिक रूप से निर्बल समझा जाता है, तब भी उसे मताधिकार की अधिक आवश्यकता है क्योंकि उसे अपनी रक्षा क े लिए राज्य और समाज पर अधिक निर्भर होना होता है। स्त्री की सुरक्षा और समाज क े विकास दोनों ही दृष्टि से स्त्री मताधिकार आवश्यक है। आलोचना- स्वतंत्रता संबंधी विचारों क े समान ही प्रतिनिधि शासन क े विषय में भी मिल क े द्वारा व्यक्त किए गए विचारों की आलोचकों ने नाना आधारों पर आलोचना की, जिनमें से क ु छ प्रमुख इस प्रकार है- ● लोकतंत्र में बहुमत की निरंक ु शता क े प्रति मिल जरूरत से क ु छ ज्यादा ही चिंतित है। लोकतंत्र भले ही बहु संख्या का शासन होता है, कि ं तु उसे अल्पमत का ध्यान रखना होता है, अन्यथा सामाजिक शांति और सौहार्द खतरे में पड़ता है, अतः बहुमत और अल्पमत क े संबंधों की सही व्याख्या करने की आवश्यकता है, न कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली को अपनाया जाने की। ● आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली एक जटिल प्रणाली है, जो सामान्य मतदाता की समझ से परे है, व्यापक रूप में इसे व्यवहार में अपनाना संभव नहीं है। ● गुप्त मतदान क े क ु छ दोष हो सकते हैं लेकिन इसकी सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि इसमें मतदाता बिना किसी भय क े अपनी इच्छा अनुसार इच्छित प्रत्याशी को मत दे सकता है। यदि इसे खुला कर दिया गया तो मतदाता धनबल और गुंडों क े आतंक से आतंकित होकर मतदान करने क े लिए विवश होगा या मतदान करेगा ही नहीं। ● मिल द्वारा किया गया बहुल मताधिकार का समर्थन जनतंत्र को क ु लीन तंत्र में परिवर्तित कर देगा। यह लोकतंत्र क े समानता क े सिद्धांत क े नितांत विपरीत है। योग्यता का वस्तुनिष्ठ मापदंड विकसित करना अत्यंत कठिन है। शैक्षिक योग्यता एक मापदंड हो सकती है लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि हर शिक्षित व्यक्ति बुद्धिमान भी होगा। ● मताधिकार को संपत्ति और शिक्षा क े आधार पर प्रदान करने का विचार भी लोकतंत्र विरोधी है। आज दुनिया क े सभी लोकतांत्रिक देशों में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का विचार अपनाया जाता है। स्पष्ट है कि स्वतंत्रता और प्रतिनिधि शासन क े विषय में मिल क े विचार दोष रहित नहीं है, फिर भी राजनीतिक चिंतन को उसकी देन महत्वपूर्ण है। वह अपने युग का अग्रणी उदारवादी था और उसक े चिंतन ने अपने युग को गहराई से प्रभावित किया । बाउले ने उसका मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि ‘’यदि चिंतन का स्तर नीतियों को प्रभावित करने की दृष्टि से आंका जाए तो मिल का स्तर बहुत ऊ ं चा आंका जाना चाहिए। एक तर्क शास्त्री, अर्थशास्त्री तथा एक राजनीतिक चिंतक क े रूप में वह अपने समय का एक पैगंबर माना जाता था। ‘’ हरबर्ट स्पेंसर ने भी लिखा है कि ‘’ मानव कल्याण क े संवर्धन की उग्र इच्छा ही एकमात्र वह कारण था जिसक े प्रति उसने स्वयं को समर्पित कर दिया था। ‘’
  • 10. निष्कर्ष- उपर्युक्त विवेचन क े आधार पर मिलकर राजनीतिक चिंतन क े संबंध में क ु छ निष्कर्ष निम्न वत हैं- ● जे. एस. मिल 19वीं शताब्दी का प्रभावी उदारवादी विचारक हैं। ● बेंथम क े उपयोगिता वादी चिंतन में संशोधन करने वाला मिल अंतिम उपयोगिता वादी विचारक है। ● ब्रिटिश राजनीति में भाग लेने वाला और सांसद क े रूप में चुना जाने वाले मिल क े राजनीतिक विचार तर्क एवं अनुभव पर आधारित हैं। ● व्यक्तिगत स्वतंत्रता क े समर्थन में मिल द्वारा दिए गए तर्क महत्वपूर्ण है। ● समाज क े विकास क े लिए प्रतिबंध रहित वैचारिक स्वतंत्रता अपरिहार्य है। ● राष्ट्र की प्रादेशिक अखंडता, सुरक्षा, सार्वजनिक दायित्व का निर्वहन एवं व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से राज्य और समाज क े द्वारा व्यक्ति की कार्य की स्वतंत्रता पर उचित सीमाएं लगाई जा सकती हैं। ● मिल की दृष्टि में लोकतंत्र सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था है। ● प्रतिनिधि शासन में क ु छ सुधार कर उसे सर्वोत्तम बनाया जा सकता है। ● खुला मतदान, बहुल मतदान, शिक्षा एवं संपत्ति आधारित मताधिकार एवं आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली को अपनाकर प्रतिनिधि शासन क े दोषों को दूर किया जा सकता है। ● मिल की दृष्टि में प्रतिनिधि शासन में संसद का कार्य कानून बनाना ना होकर शासन पर नियंत्रण स्थापित करना होना चाहिए और कानून निर्माण का कार्य विधि विशेषज्ञों की समिति क े द्वारा किया जाना चाहिए। REFERENCES AND SUGGESTED READING ● Prabhudatt Sharma ,Pashchatya Rajnitik Chintan ● Stanford Encyclopaedia of Philosophy,plata.stanford.edu ● Journals.sagepub.com ● J. S. Mill on Democracy,Freedom and Meritocracy,www.jstor.org ● Routledge Encyclopaedia Of Philosophy,rep.routledge.com प्रश्न- निबंधात्मक- 1. एक उदारवादी विचारक क े रूप में मिल क े विचारों का मूल्यांकन कीजिए। 2. मिल की दृष्टि में स्वतंत्रता क्या है। उसक े किन रूपों की विवेचना मिल क े द्वारा की गई है।
  • 11. 3. ‘’ जे. एस. मिल खोखली स्वतंत्रता का पैगंबर है’’, बार्कर क े इस कथन क े संबंध में मिल क े स्वतंत्रता संबंधी विचारों का मूल्यांकन कीजिए। 4. प्रतिनिधि शासन क े दोषों को दूर करने क े लिए मिल क े द्वारा क्या सुझाव दिए गए, विवेचना कीजिए। उसकी दृष्टि में सर्वोत्तम शासन व्यवस्था कौन सी है। वस्तुनिष्ठ प्रश्न- 1. निम्नलिखित में से कौन सी पुस्तक मिल द्वारा नहीं लिखी गई है। [ अ ] ऑन लिबर्टी [ ब ] क ं सीडरेशन ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट [ स ] सजेशन ऑन रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट [ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं। 2. मिल की स्वतंत्रता की धारणा क े विषय में कौन सा कथन सत्य है। [ अ ] मिल की स्वतंत्रता की धारणा नकारात्मक है। [ ब ] उसकी स्वतंत्रता की धारणा में अधिकारों का कोई उल्लेख नहीं है। [स ] वैचारिक स्वतंत्रता प्रतिबंध रहित होनी चाहिए। [ द ] उपर्युक्त सभी सत्य है। 3. मिल क े अनुसार व्यक्ति क े किन कार्यों की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है। [ अ ] स्व- संबंधी [ ब ] पर- संबंधी[ स ] सार्वजनिक कार्य संबंधी [ द ]’ ब’और’ स’ दोनों सही हैं। 4. मिल की दृष्टि में वैचारिक स्वतंत्रता क्यों आवश्यक है। [ अ ] किसी विषय क े संबंध में सत्य को जानने क े लिए [ ब ] नए विचारों क े आधार पर समाज क े विकास क े लिए [ स ] उपर्युक्त दोनों दृष्टिकोण से [ द ] उपरोक्त में से कोई नहीं 5. मिल ने ब्रिटिश राजनीति में किबाबा नया सालस राजनीतिक दल क े उम्मीदवार क े रूप में संसद क े निर्वाचन में भाग लिया था। [ अ ] अनुदारवादी दल [ ब ] उदारवादी दल [ स ] मजदूर दल [ द ] रिपब्लिकन दल 6. मिल ने स्त्री मताधिकार को क्यों उपयोगी बताया। [ अ ] स्त्रियों क े मानसिक गुणों का लाभ सार्वजनिक जीवन को उपलब्ध कराने की दृष्टि से [ ब ] शारीरिक दुर्बलता क े कारण महिलाओं की कानून पर अधिक निर्भरता क े कारण [ स ] उपर्युक्त दोनों [ द ] उपर्युक्त में से कोई नहीं 7. मिल द्वारा खुले मताधिकार का समर्थन किस आधार पर किया गया। [ अ ] मतदान एक सार्वजनिक कर्तव्य है, जिस क े पालन में पारदर्शिता होनी चाहिए। [ ब ] मतदाताओं की चारित्रिक भ्रष्टता को रोकने क े लिए
  • 12. [ स ] उपर्युक्त दोनों सही है। [ द ] ‘अ’सही कि ं तु ‘ब’ गलत है। 8. मिल क े द्वारा स्त्री मताधिकार का समर्थन किस क े गुणों से प्रभावित होकर किया गया। [ अ ] माता [ ब ] पिता [ स ] पत्नी [ द ] उपरोक्त सभी 9. शासन में अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने की दृष्टि से मिल क े द्वारा किस निर्वाचन पद्धति का सुझाव दिया गया। [ अ ] सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली [ ब ] अल्पसंख्यकों को आरक्षण [ स ] आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली [ द ] व्यावसायिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली 10. मिल क े द्वारा बहुल मताधिकार का समर्थन किस आधार पर किया गया। [ अ ] शिक्षित और संपत्ति वान लोगों को शासन में प्रतिनिधित्व प्रदान करने क े लिए [ ब ] सार्वजनिक जीवन में शिक्षा और संपत्ति क े महत्व को स्थापित करने क े लिए [ स ] प्रजातंत्र में संख्या क े साथ- साथ गुण क े मिश्रण क े लिए [ द ] उपर्युक्त सभी क े लिए उत्तर- 1. स 2.द 3. द 4. स 5.ब 6. स 7. स 8.स स 9. स 10. स